29 अगस्त 2012

विशुद्ध बुद्धि

परमपुरुष यदि तुमसे पूछें की तुम क्या चाहते हो, तो तुम क्या कहोगे ? इस विषय में तुम्हें एक ही बात कहना उचित होगा - ' हे परमपुरुष, मैं सिर्फ तुम्हारा आशीर्वाद चाहता हूँ, जिससे मेरी बुद्धि-मेधा  ठीक पथ पर चले ।जो पाना था वह तो मैं पा ही गया हूँ ।' मनुष्य का जो अध:पतन होता है, वह इस बुद्धि के दोष से ही,त्रुटिपूर्ण बुद्धि के कारण ही ।

'स नो बुद्ध्या  शुभया संयुक्तु' । वेद  में कहा गया है : इस विश्वब्रहमांड के सृष्टिकर्ता  सुमहान हैं । उनके पास मेरी एक ही प्रार्थना है और वह यह है की वे हमारी बुद्धि को शुभ के साथ संयुक्त रखें । मैं इतना ही चाहता हूँ और कुछ नहीं । संस्कृत में गायत्री छंद में रचित श्लोक में कहा गया है :

"ॐ भूर्भुव:स्वः तत सवितुर्वरेणयं ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात ।"

'धीमहि' अर्थात हम लोग ध्यान करतें हैं; हमलोग क्यों उनका ध्यान करतें हैं ? हाँ, ध्यान इसलिए करते हैं जिससे वे हमलोगों की मेधा को शुभत्व के पथ पर परिचालित करें ।
यह विश्व ब्रह्माण्ड सप्त्लोकात्मक  है -- भू ,भव:,स्व:, मह:, जन:, तप: और सत्य । इस सप्तलोक के सविता अर्थात सृष्टिकर्ता  हैं परमपुरुष । सविता माने पिता ।  कोई-कोई भूल से कन्या का नाम रखते हैं सविता ।
नहीं,लड़कियों का नाम सविता रखना  ठीक नहीं है; क्योंकि सविता माने  पिता -  यह पुलिंग वाचक शब्द  है ।
हमलोग सप्त्लोक के सृष्टिकर्ता सगुण  ब्रह्म के वरेण्य ज्योति का ध्यान करते हैं । क्यों करतें हैं ? हाँ, यह ही मैंने कहा है, ध्यान इसलिए करतें हैं कि जिससे वे कृपा करके हमलोगों की बुद्धि को ठीक पथ पर  परिचालित  करें ।  'धी' माने बुद्धि या  मेधा । 'न:' माने हमलोगों को 'प्रचोदयात' माने 'शुभ पथ पर परिचालित करें' ।

मनुष्य की ओर  से यह प्रार्थना की जा सकती है - परमपुरुष जिससे मनुष्य की बुद्धि को विशुद्ध पथ पर परिचालित करें । बुद्धि यदि ठीक पथ पर चले तब प्राप्तव्य [प्राप्त करने योग्य] सबकुछ अधिगत [प्राप्त] होगा  और बुद्धि यदि विपथगामी हो तो मनुष्य कुछ भी नहीं कर पायेगा । इतना ही नहीं, सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं रख  सकेगा ।

(पटना, 24  अगस्त ,1978)

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