2 अगस्त 2012

जाति-पांति मानना पापाचार है

इस ब्रह्माण्ड में सबसे वृहत सत्ता है परमपुरुष । वृहत माने इतना बड़ा कि उन्हें मापा नही जा सकता है ।अतः वृहत सत्ता एक ही हैं -- परम पुरुष । और वृहत की यह खूबी है कि उनकी भावना लेने से और लोग भी वृहत हो जाते हैं और उनसे मिलकर एक हो जाते हैं ।वृहत् बनाने की शक्ति सिर्फ उनमे है । इसीलिए तो उनको ब्रह्म कहते हैं ।
                                               'ब्रह्म विद ब्रह्मैव  भवति'
उनकी भावना लेने से, उनको जानने जानने वाला भी ब्रह्म बन जाता है । मगर जो सबसे क्षुद्र वस्तु  है, अणु से भी अणु, परमाणु  से भी छोटा जो कुछ भी विश्व ब्रह्माण्ड में, वह भी परमपुरुष है ।

'आत्मागुहायाम' पहले ही कहा गया था कि गुहा माने है मैंपन । हर जीव के मैंपन के अंदर वही  परमपुरुष छुपे हुए हैं । जो हैं मैंपन को जानने वाले । तुममे 'मैं हूँ ' ऐसा एक बोध है । मैं हूँ ( I exist )-- इस बोध को जो जानने वाला है, वही है तुम्हारी आत्मा । मैं हूँ  का जो यह बोध है, यह मन का बोध  है । मन ऐसा  सोचता है कि मैं हूँ  ( mind thinks that I  exist ) । लेकिन तुम्हारा मन जो सोचता है मैं हूँ, इसको जानती है तुम्हारी आत्मा । तो हर जीव के मैंपन के भीतर परमपुरुष छुपे हुए हैं । किसी भी हालत में तुम अकेले नहीं हो ।किसी भी हालत में तुम बेसहारा नहीं हो । तुम निसहाय नहीं हो । किसी भी हालत में किसी से डरना नहीं है । परमपुरुष तुम्हारे साथ हैं। जिनसे बड़ी और अधिक शक्तिशाली सत्ता कोई नहीं है, वे जब तुम्हारे साथ हैं, फिर तुम्ही तो शक्तिशाली  हो ।  जब तुम सोचते की कोई तुम्हारे  साथ नहीं है, तब तुम कमजोर हो। जब यह बात याद पड़ जाती है कि परमपुरुष स्वयं तुम्हारे साथ हैं, तब तुम सबसे अधिक शक्तिशाली हो जाते हो । ठीक वैसे ही अगर विद्या में,बुद्धि  में  और सामर्थ्य में तुम दूसरों से पीछे हो तो मन में ग्लानि या मन में एक तरह की कुण्ठा (complex)  हो सकती है । मगर जब याद पड़ जायेगी की परमपुरुष साथ है, तो तुम्ही दुनिया में सबसे बड़े  विद्वान,सबसे बड़े धनी  और सबसे बड़े शक्तिशाली हो । तो यह मनुष्य के मन की ग्लानि  है, मन का रोग है जो यह सोचता है की मैं अकेला हूँ । किसी भी हालत में तुमलोग अकेले नहीं हो ।

भारत का एक अभिशाप है कि  मनुष्य को हमलोग छोटा समझते थे । हम लोग, हमारे पूर्वज लोग भूल से जाति-पाति  बना गए थे । अब पूर्वज लोगों की जो त्रुटि  है, पूर्वज लोगों में जो कमी थी, यह हमारे लिए फ़र्ज़  है कि हम उन कमियों से दूर रहें । पूर्वजों के जो पाप हैं उसका हम प्रायश्चित करें । तो किसी के मन में बार-बार सुनते-सुनते यह भावना बैठ गई है कि मैं नीच जाति  का हूँ, तो उससे भी मैं कहूँगा की ऐसा  भी नहीं सोचना चाहिए , क्योंकि दुनिया में जितने जीव हैं, जितने मनुष्य हैं सबके लिए एक ही पिता हैं-- परमपिता,परमपुरुष । तो एक ही पिता की संतान कभी ऊँच-नीच नहीं हो सकती है । इसलिए जातिभेद  बनाने वाले समाज के  दुश्मन थे और उनका जो कहना है ऊँच या नीच, ऐसा  कहना अधार्मिक है ,क्योंकि जो एक परम पिता को मानते हैं, वे जातिपाँति  को नहीं मान सकते  । क्योंकि फिर तो अलग-अलग जात के अलग-अलग पिता होंगे । इसलिए वे परमपिता के साथ नहीं हुए । इसलिए जो एक परमात्मा ,एक परमपुरुष को मानते हैं, वे जातीपांति नहीं मान सकते हैं । और वे स्पष्ट  भाषा में घोषणा करेंगे की ये जाति-पांति मानना पापाचार  है ; यह जाति-पाँति  अधार्मिक है । तुम लोग जाति-पाँति  के चंगुल से दूर रहो ।

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