9 जुलाई 2009

आगे चलना ही जीवन धर्म है

आगे चलना ही जीवन का धर्म है केवल जीवन का धर्म कहने से नही चलेगा , आगे चलना अस्तित्व का धर्म हैकोई कह सकता है , जो जड़ जगत है वह तो आगे नही चल रहा है परन्तु नही , वह भी आगे चल रहा हैक्योंकि पृथिवी भी तो चल रही है, कोई रूका हुआ नही है। पृथिवी आगे चल रही है , इसलिए स्वभावार्थे ' गम' धातु के साथ 'क्ति' प्रत्य करके जगत शब्द निष्पन हुआ हैजगत शब्द का अर्थ है चलना जिसका स्वभाव है, अथवा और एक नाम है संसार अर्थात् ससरना जिसका स्वभाव हैइसलिए केवल सोये या बैठे रहने के लिए हमलोग कोई पृथिवी पर नही आए हैं - आगे चलने के लिए , काम करने के लिए आए हैंयदि कोई दर्शन या तत्व (विचारधारा ) मनुष्य को आगे चलने का धर्मं भुला देना चाहता है तो समझना होगा वह मनुष्य के प्राणधर्म के साथ सम्पर्कित नही हैमनुष्य को दिखाना होगा अनंत जीवन का पथ ,मृत्यु का पथ नही

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