9 नवंबर 2010

तुमि आमार ध्यान (बांगला)

तुमि आमार ध्यान, तुमि आमार ज्ञान,
तुमि आमार संसार |
तोमाय हारिये कांदी,तोमाये फिरिये हाँसि,
तुमि मोर जीवनेर सार ||

पूर्वास्ये देखि तोमार अरुणिमा,
पश्चिमास्ये हेरी तोमारई लालिमा |
मध्य गगने तुमि सुतीब्र द्रघिमा,
तोमार लीला अपार ||

जीवनेर प्रभाते तुमि प्रिय उत्सव,
मध्याहाने तुमि कर्मेरइ  आसब |
सायाह्ने तुमि प्रिय धोरे रूप अभिनव ,
टेने नाओ काछे तोमार ||

भावार्थ : तुम ही मेरा ध्यान हो, तुम ही मेरा ज्ञान हो और तुम ही मेरा संसार हो | हे मेरे जीवन के सार तत्त्व, तुम्हे खोकर मैं रोता हूँ  और तुम्हे वापस पाकर मैं हँसता हूँ ?

पूर्व में, मैं तुम्हारी अरुण आभा को और पश्चिम में तुम्हारी लालिमा को निहारता हूँ | मध्य आकाश में तुम तेज धूप के रूप चमकते हो | तुम्हारी लीला अपरम्पार है |

जीवन कि सुबह(बचपन) में तुम ही मेरे प्रिय उत्सव हो | दोपहर(युवावस्था) में  तुम मेरे कर्म कि जीवनी शक्ति हो और सायंकाल(बुढ़ापे) में, हे प्रिय, तुम नया आकर्षक रूप धरकर मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेते हो, खींच लेते हो |

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