त्वमसि सर्वेषां पिता त्वमसि मम देवता |
त्वमसि त्रिलोकनाथः नमस्कृत्यं गंगाधरम ||
विषये विषये पूज्यः आशये आशये युज्यः |
अणुशये अनासक्तः नास्ति तव काल स्थानं ||
ईशोSसि अनीशोSसि त्वं गुणी गुणातीतोSसि त्वं |
गणनाथः गणप्रभुः देवानामादिदेवः त्वं ||
भावार्थ : तुम सब के पिता हो, तुम मेरे देवता हो | तुम तीनों लोकों के स्वामी हो | हे गंगा को धारण करने वाले शिव मैं तुम्हे नमस्कार करता हूँ | समस्त विषयों में तुम पूजनीय हो | सब के मूल या सार से तुम जुड़े हुए हो | तुम सब से अनासक्त भी हो | तुम्हारा कोई काल या स्थान नहीं है अर्थात तुम कालातीत और देशातीत हो | तुम नियंत्रक सत्ता हो और तुम ही नियंत्रित सत्ता भी हो | प्रकृति के गुणों से प्रभावित सारा अस्तित्व तुम ही हो , परन्तु तुम गुणों के परे भी हो (तुम गुणाधीन,गुणाधीश तथा गुणातीत हो) | अपने शिष्यों और भक्तों के तुम मालिक हो ; तुम उनके आराध्य-परमाराध्य हो | देवताओं में सर्वप्रथम तुम हो, तुम आदिदेव हो |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें